Mental Health | क्रिकेट और मानसिक स्वास्थ्य | खिलाड़ियों की चुनौतियाँ| मैक्सवेल, स्टोक्स,कोहली, सब हुए है मानसिक स्वास्थ्य से प्रभावित|| मानसिक स्वास्थ्य|

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Mental Health | क्रिकेट और मानसिक स्वास्थ्य | मैक्सवेल, स्टोक्स,कोहली, सब हुए है मानसिक स्वास्थ्य से प्रभावित |मानसिक स्वास्थ्य

 

क्रिकेट, जो दुनिया भर के खेलों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, न केवल कौशल, शारीरिक फिटनेस और रणनीति का खेल है, बल्कि मानसिक दृढ़ता और स्थिरता का भी है। खिलाड़ियों पर लगातार प्रदर्शन का दबाव, प्रशंसकों की अपेक्षाएँ, सोशल मीडिया का ध्यान, और व्यक्तिगत जीवन की चुनौतियाँ मानसिक स्वास्थ्य को बहुत हद तक प्रभावित करती हैं। हाल के वर्षों में, क्रिकेट और मानसिक स्वास्थ्य के बीच का संबंध अधिक चर्चा का विषय बन गया है। आज के ब्लॉग में, हम क्रिकेटरों द्वारा झेली जाने वाली मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं और इसे बेहतर बनाने के लिए उठाए गए कदमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

क्रिकेट और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध :

क्रिकेट शारीरिक दृष्टिकोण के साथ साथ एक मानसिक खेल है। बल्लेबाजों और गेंदबाजों को अपनी रणनीति और प्रदर्शन में निरंतर सुधार करना होता है, जिससे वह लंबे समय तक टीम के लिए अच्छा प्रदर्शन कर सकते है। टेस्ट क्रिकेट में खिलाड़ियों को कई दिनों तक मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना पड़ता है। इससे मानसिक थकान और तनाव बढ़ जाता है।

क्रिकेटरों के लिए निम्नलिखित मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ आम हैं:

1. प्रदर्शन का दबाव :

खिलाड़ियों पर हमेशा बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव रहता है। एक खराब पारी या खराब सीरीज का असर उनके आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ सकता है। जिससे उन्हें निकलने में काभी दिक्कत होती हैं।


2. मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव :

आज के दौर में खिलाड़ियों का हर प्रदर्शन मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन जाता है। खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करे तो अगले मैच में फैंस वैसे ही प्रदर्शन की अपेक्षा करते है, अगर बुरा प्रदर्शन करे तो उससे गालियां पड़ती हैं। जिससे खिलाड़ी को आलोचना और ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है जो मानसिक रूप से थकावट भरा होता है।

3. लंबे समय तक अलगाव :

क्रिकेट खिलाड़ियों को साल में कई बार अपने देश से दूसरे देश जाके मैचें खेलने पड़ते हैं, जिससे वह कई महीनों तक अपने परिवार और दोस्तों से दूर रहना पड़ता है, जो अकेलापन और उदासी का प्रमुख कारण बन जाता है।

4. चोटों का मानसिक प्रभाव :

शारीरिक चोट के कारण खेल से लंबे समय तक दूर रहने पर खिलाड़ी अवसाद और चिंता का शिकार हो जाते हैं। कई बार तो खिलाड़ी ये सोच के टेंशन में आ जाते है कि अब वह मैदान पर वापसी कर भी पाएंगे कि नहीं।

5. करियर का अंत और अस्थिरता का डर :

उम्र और प्रदर्शन के साथ करियर का अंत या चयन से बाहर होने का डर भी मानसिक तनाव का एक बड़ा कारण है। कई बार दूसरे नए खिलाड़ी आगे अच्छा प्रदर्शन करते है जिससे पुराने खिलाड़ियों पर अच्छे प्रदर्शन का दवाब बनता जाता है। जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

प्रमुख क्रिकेटरों की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कहानियाँ :

कई क्रिकेटरों ने खुलकर अपनी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में बात की है। इनमें से कुछ उदाहरण हैं:

1. ग्लेन मैक्सवेल (ऑस्ट्रेलिया) :

ग्लेन मैक्सवेल ने अवसाद के कारण क्रिकेट से ब्रेक लिया। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें मानसिक थकान बहुत ज्यादा हो रही थी इसे वजह से उन्होंने क्रिकेट से ब्रेक लिया।। ब्रेक के बाद उन्होंने खुद को बेहतर महसूस किया । और उनका प्रदर्शन भी काभी अच्छा रहा।

2. सारा टेलर (इंग्लैंड) :

इंग्लैंड की महिला क्रिकेटर सारा टेलर ने Anxitey (चिंता) के कारण अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझाने के लिए कई लोगों को प्रेरित किया।

3. बेन स्टोक्स (इंग्लैंड) :

2021 में, स्टोक्स ने मानसिक स्वास्थ्य के कारण क्रिकेट से अनिश्चितकालीन ब्रेक लेने का फैसला किया। उन्होंने स्वीकार किया कि वह मानसिक रूप से थकावट महसूस कर रहे थे और इस समय को अपने आप को बेहतर समझने और पुनः ऊर्जा प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे। यह निर्णय उस समय आया जब इंग्लैंड को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। हालांकि, स्टोक्स ने यह स्पष्ट किया कि मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना सबसे महत्वपूर्ण है।

4.  विराट कोहली (भारत) :


विराट कोहली ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में मानसिक दबाव और असुरक्षा के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि कैसे एक खराब दौरे ने उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना दिया था। जिसे वजह से उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं हो पा रहा था, इसलिए उन्होंने कुछ दिनों का ब्रेक लिया , और लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बताया।

 

मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए पहल और समाधान :

1. खिलाड़ियों को ब्रेक देना :

कई बोर्ड अब खिलाड़ियों को जरूरत पड़ने पर ब्रेक लेने की अनुमति देते हैं। और उन्हें पूरा सपोर्ट करते, जिससे खिलाड़ीयो को मानसिक स्वास्थ्य से बाहर आने में काभी मदद मिलती हैं। यह पहल मानसिक थकान को कम करने में मदद करती है।

2. मेंटल हेल्थ कोच और काउंसलिंग :

क्रिकेट टीमों में अब मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को अपने स्काउट में शामिल कर रही है, जो खिलाड़ियों को मानसिक समस्याओं से निपटने में मदद करते हैं। हर खिलाड़ियों का वन टू वन काउंसिलिंग करा रही हैं, जिससे उन्हें एंजाइटी से बाहर आने में मदद मिलती हैं। क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ी अब मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा करने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं।


3. शारीरिक और मानसिक फिटनेस पर समान ध्यान :

खिलाड़ियों को शारीरिक फिटनेस के साथ-साथ मानसिक फिटनेस पर भी ध्यान देने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। योग और ध्यान जैसे उपायों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। म्यूजिक सेशन किए जा रहे है।

4. सोशल मीडिया की निगरानी :

कुछ खिलाड़ियों ने सोशल मीडिया से दूरी बनाकर मानसिक स्वास्थ्य में सुधार किया है। सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए यह एक कारगर उपाय है।
कुछ खिलाड़ी मैच खेलने से एक दिन पहले तक सोशल मीडिया से दूरी बना लेते हैं जिससे उन्हें मैच पर पूरी फोकस रहने में मदद मिलती है ।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति नजरिया :

भारत में, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी जागरूकता की कमी है। हालांकि, क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल के माध्यम से इस विषय पर चर्चा बढ़ रही है। विराट कोहली, रोहित शर्मा, और अन्य भारतीय क्रिकेटरों के उदाहरण ने युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया है। बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) भी अब खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहा है। विभिन्न टूर्नामेंट्स के दौरान काउंसलिंग और मेंटल हेल्थ वर्कशॉप आयोजित की जाती हैं।

निष्कर्ष :

क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं है; यह खिलाड़ियों के लिए जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ इस खेल का एक अनदेखा पहलू रही हैं। खिलाड़ियों पर दबाव, आलोचना, और अस्थिरता का डर मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

हालांकि, जागरूकता और समर्थन बढ़ने से स्थिति में सुधार हो रहा है। खिलाड़ियों के लिए ब्रेक, काउंसलिंग, और मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर चर्चा जैसे कदम मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं। हमें समझना चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है, और इसे प्राथमिकता देना समय की आवश्यकता है।

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